Saturday 16 April 2016

श्री हनुमानजी की आरती





( श्री हनुमानजी की आरती )


आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||

आरती कीजै हनुमान लला की ||



जाके बल से गिरिवर काँपै | रोग दोष जाके निकट न झाँपै ||

अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ||



दे बीरा रघुनाथ पठाए | लंका जारि सीय सुधि लाये ||

लंका सो कोट समुद्र सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ||



लंका जारि असुर संहारे | सियारामजीके काँज सँवारे ||

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे | आनि संजीवन प्रान उबारे ||



पैठी पताल तोरि जम-कारे | अहिरावन की भुजा उखारे  ||

बायें भुजा असुर दल मारे | दहिने भुजा संतजन तारे ||



सुर नर मुनि आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ||

कंचन थार कपूर लौ छाई | आरति करत अंजना माई ||


जो हनुमानजी की आरती गावै | बसि बैकुंठ परमपद पावै ||


श्री हनुमान चालीसा




 

( श्री हनुमान चालीसा )
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥
॥ चौपाई ॥
(१)
(२)
(३)
(४)
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ १ ॥
  राम दूत अतुलित बल धामा ।
  अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ २ ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥ ३ ॥
  कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
  कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ ४ ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ ५ ॥
  शंकर सुवन केसरी नंदन ।
  तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ ६ ॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥ ७ ॥
  प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
  राम लक्ष्मण सीता मन बसिया ॥ ८ ॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ ९ ॥
  भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
  रामचंद्र के काज सँवारे ॥ १० ॥
लाय सँजीवनि लखन जियाए ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए ॥ ११ ॥
  रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई ।
  तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ १२ ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ १३ ॥
  सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
  नारद सारद सहित अहीसा ॥ १४ ॥
जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते ।
कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते ॥ १५ ॥
  तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
  राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥ १६ ॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥ १७ ॥
  जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
  लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ १९ ॥
  दुर्गम काज जगत के जेते ।
  सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ २० ॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ २१ ॥
  सब सुख लहै तुम्हारी शरना ।
  तुम रक्षक काहू को डरना ॥ २२ ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनौं लोक हाँक ते काँपे ॥ २३ ॥
  भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
  महाबीर जब नाम सुनावै ॥ २४ ॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ २५ ॥
  संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
  मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ २६ ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥ २७ ॥
  और मनोरथ जो कोई लावै ।
  सोई अमित जीवन फल पावै ॥ २८ ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ २९ ॥
  साधु संत के तुम रखवारे ।
  असुर निकंदन राम दुलारे ॥ ३० ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥ ३१ ॥
  राम रसायन तुम्हरे पासा ।
  सदा रहो रघुपति के दासा ॥ ३२ ॥
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ ३३ ॥
  अंत काल रघुबर पुर जाई ।
  जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ ३४ ॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥ ३५ ॥
  संकट कटै मिटै सब पीरा ।
  जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ ३६ ॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ ३७ ॥
  जो शत बार पाठ कर कोई ।
  छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ ३८ ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ ३९ ॥
  तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
  कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप । राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥