( श्री हनुमानजी
की आरती )
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आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||
आरती कीजै हनुमान लला की ||
जाके बल से गिरिवर काँपै | रोग दोष जाके निकट न झाँपै ||
अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ||
दे बीरा रघुनाथ पठाए | लंका जारि सीय सुधि लाये ||
लंका सो कोट समुद्र सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ||
लंका जारि असुर संहारे | सियारामजीके काँज सँवारे ||
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे | आनि संजीवन प्रान उबारे ||
पैठी पताल तोरि जम-कारे | अहिरावन की भुजा उखारे ||
बायें भुजा असुर दल मारे | दहिने भुजा संतजन तारे ||
सुर नर मुनि आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ||
कंचन थार कपूर लौ छाई | आरति करत अंजना माई ||
जो हनुमानजी की आरती गावै | बसि बैकुंठ परमपद पावै ||
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Devi Devata
Saturday 16 April 2016
श्री हनुमानजी की आरती
श्री हनुमान चालीसा
( श्री हनुमान चालीसा )
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॥ दोहा ॥
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श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु
मुकुरु सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं
पवन कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥
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॥ चौपाई ॥
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(१)
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(२)
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(३)
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(४)
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जय हनुमान ज्ञान गुन
सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक
उजागर ॥ १ ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ २ ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी
।
कुमति निवार सुमति
के संगी ॥ ३ ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ ४ ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा
बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै
॥ ५ ॥
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ ६ ॥
बिद्यावान गुनी अति
चातुर ।
राम काज करिबे को
आतुर ॥ ७ ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लक्ष्मण सीता मन बसिया ॥ ८ ॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं
दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक
जरावा ॥ ९ ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचंद्र के काज सँवारे ॥ १० ॥
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लाय सँजीवनि लखन जियाए
।
श्रीरघुबीर हरषि उर
लाए ॥ ११ ॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ १२ ॥
सहस बदन तुम्हरो जस
गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ
लगावैं ॥ १३ ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥ १४ ॥
जम कुबेर दिक्पाल
जहाँ ते ।
कबी कोबिद कहि सकैं
कहाँ ते ॥ १५ ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥ १६ ॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन
माना ।
लंकेश्वर भए सब जग
जाना ॥ १७ ॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि
मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज
नाहीं ॥ १९ ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ २० ॥
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राम दुआरे तुम रखवारे
।
होत न आज्ञा बिनु
पैसारे ॥ २१ ॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥ २२ ॥
आपन तेज सम्हारो आपै
।
तीनौं लोक हाँक ते
काँपे ॥ २३ ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥ २४ ॥
नासै रोग हरै सब पीरा
।
जपत निरंतर हनुमत
बीरा ॥ २५ ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ २६ ॥
सब पर राम तपस्वी
राजा ।
तिन के काज सकल तुम
साजा ॥ २७ ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥ २८ ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
।
है परसिद्ध जगत उजियारा
॥ २९ ॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ ३० ॥
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अष्ट सिद्धि नौ निधि
के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता
॥ ३१ ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥ ३२ ॥
तुम्हरे भजन राम को
पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै
॥ ३३ ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ ३४ ॥
और देवता चित्त न
धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख
करई ॥ ३५ ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ ३६ ॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं
।
कृपा करहु गुरुदेव
की नाईं ॥ ३७ ॥
जो शत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ ३८ ॥
जो यह पढ़ै हनुमान
चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा
॥ ३९ ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ ४० ॥
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॥
दोहा ॥
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पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप
। राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
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